क्यों खास है सूरदास के दोहे!
कृष्ण भक्ति के कवियों में सर्वोपरि सूरदार ही थे जिन्होंने कृष्ण भक्ति के ऊपर ना जाने क्या क्या लिखा है। उन्होंने अपने दोहे में भगवान श्री कृष्ण की महिमाओं का सुंदर वर्णन देखने को मिला और Surdas ke dohe कृष्ण के प्रति उनके अनन्त प्रेम और आस्था को प्रदर्शित होता है। सूरदास की प्रमुख रचनाएं ब्रज भाषा में लिखी गई हैं और उन्हें ब्रजभाषा का श्रेष्ठ कवि भी कहा जाता है। सूरदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के प्रमुख कवियों में एक थे और हिंदी साहित्य के प्रति उनका योगदान शब्दों में बयां नहीं हो सकता है, इसलिए उन्हें हिंदी साहित्य का सूर्य भी कहा जाता है। सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित रूनकता नाम के गांव में हुआ था और इनके पिता रामदास एक गायक हुआ करते थे। सूरदास को कई लोग जन्म से अंधा मानते थे तो कोई कहता था कि बाद में हुए। इस मुद्दे पर आज भी कई विद्वानों के मतभेद हैं। यहां आपको उनके कुछ दोहों के बारे में जानना चाहिए।
खेलने न जाऊं मैया ग्वालिनी खिजावे मोहे।
पीत बसन गुंज माला लेती है छुडायके॥
कोई तेरा नाम लेके लागी गारी मोकु देण।
मैं भी वाकूं गारी देके आयहुं पलायके॥
कोई मेरा मुख चुंबे भवन बुलाय केरी।
कांचली उतार लेती देती है नचायके॥
सूरदास तो तलात नमयासु कहत बात हांसे।
उठ मैया लेती कंठ लगायके। खेलनेन जाऊं॥
इनका दूसरा दोहा कुछ इस तरह है....
मैया! मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥
देखि तुही छींके पर भाजन ऊंचे धरि लटकायो।
हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसें करि पायो॥
मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं दोना पीठि दुरायो।
डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो॥
बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप दिखायो।
सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो॥
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