बंगाल चुनाव: राजनैतिक हत्याओं का बंगाल चुनाव से क्या लिंक है!
by Tanvi Katyal Molitics - Media of Politics
अस्पताल के बेड पर प्लास्टर से बंधे पैर के साथ ममता बनर्जी की तस्वीर बंगाल चुनावों को लेकर चल रही तमाम चिंताओं को सही साबित कर रही है। नफ़रत और हिंसा से भरे चुनाव प्रचार और अभूतपूर्व ध्रुवीकरण की आशंका इन चुनावों के साथ जुड़ी हुई है।
यह कहना ग़लत नहीं होगा कि मौजूदा वक्त में ममता बनर्जी, बीजेपी के खिलाफ खड़ी सबसे मजबूत ताकतों में से एक है और पश्चिम बंगाल बीजेपी का सबसे बड़ा सपना। पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को केवल 3 सीटें हासिल हो पाईं थीं। लेकिन लोकसभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन बेहतरीन रहा। 42 सीटों में से 18 सीटें हासिल की बीजेपी ने और वोट शेयर के मामले में तृणमूल काग्रेस से केवल 3.05% कम वोट हासिल किए। बीजेपी की कोशिश यही रहेगी कि आगामी विधानसभा चुनावों में पिछले विधानसभा चुनावों के परिणामों की झलक न दिखे जबकि ममता हर कीमत पर लोकसभा चुनावों के परिणामों की झलक को ख़त्म कर देना चाहेंगी।
बंगाल- राजनैतिक समीकरण
पश्चिम बंगाल के 294 सीटों में से 165 सीटें ऐसी हैं जहाँ पर किसी एक तबके का अधिक प्रभाव है। लगभग 55 सीटों पर अल्पसंख्यकों का वर्चस्व है, वहीं 55 सीटें ऐसी हैं जहाँ शरणार्थी हिंदुओं की संख्या अधिक है। इनमें से अधिकतर सीट उत्तरी बंगाल में पड़ते हैं। शरणार्थी हिंदुओं की अधिक संख्या वाली 55 सीटों पर बीजेपी को वृहत समर्थन प्राप्त है। लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने उत्तरी बंगाल के 8 में से 7 सीटें हासिल की थी। जंगल महल क्षेत्र जिसके तहत अनु. जनजातियों के प्रभुत्व वाली 25 सीटें आतीं हैं, में भी बीजेपी ने अच्छा जनाधार तैयार कर लिया है।
जबकि दक्षिणी बंगाल में टीएमसी का प्रभुत्व कायम रहा। टीएमसी के जीते हुए 22 विधानसभा सीटों में से अधिकतर दक्षिणी बंगाल से ही आए थे। बीजेपी बंगाल के इसी हिस्से में एंट्री करना चाहती है, जबकि टीएमसी इस हिस्से को अनछुआ रखना चाहती है बीजेपी से। शक्ति की इसी चाहत ने पश्चिम बंगाल में राजनैतिक हत्याओं को बढ़ावा दिया है। दक्षिणी बंगाल में इस तरह की हत्याओं की संख्या अधिक रही है।
हिंसा सबसे बड़ी चिंता
आगामी बंगाल चुनावों को लेकर राजनैतिक विश्लेषकों की सबसे बड़ी चिंता हिंसा को लेकर है। एक निजी न्यूज़ संस्था के द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़ों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से अब तक 47 राजनैतिक हत्याएँ हुईं हैं। इनमें से 38 हत्याएँ दक्षिणी बंगाल में हुईँ। बीजेपी के 28 और टीएमसी के 18 कार्यकर्ताओं की हत्या हुई।
मुद्दे रहेंगे गौण
हालात को देखते हुए कहना ग़लत नहीं होगा कि पश्चिम बंगाल चुनाव में ज़रूरी मुद्दे हाशिए पर पड़े रहेंगे और चुनाव व्यक्तित्वों के बीच लड़ा जाएगा। ममता साबित करने में जुटी हैं कि बंगाल की असली बेटी वो हैं तो वहीं बीजेपी, पीएम मोदी के जानिब से यह स्थापित करने में लगी है कि वो रवींद्रनाथ टैगोर और सुभाष चंद्र बोस के सिद्धांतों के साथ चलकर सोनार बांग्ला बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि इस लड़ाई ने बंगाल के आम लोगों की ज़रूरतों को मुंह चिढ़ा दिया है।
होगा धार्मिक ध्रुवीकरण
बीजेपी सालों से ममता बनर्जी पर बांग्लादेशी घुसपैठियों को शरण देने का आरोप लगाती रही है। साल 2019 में नागरिकता संशोधन कानून के पास होने के बाद और नेश्नल रजिस्टर फॉर सिटिजंस के क्रियान्वयन के चर्चे के बाद से कई बार यह दिखाने की कोशिश की गई कि एनआरसी के ज़रिए घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा और इसका नुकसान ममता बनर्जी को पहुँचेगा। इसके साथ ही ममता की ऐसी छवि का निर्माण करने की कोशिश की जा रही है जिससे ये साबित हो सके कि ममता मुसलमानों को अपना वोटबैंक बनाए रखने के लिए देश की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ कर रही हैं। इस तरह से पूरे विमर्श को हिंदू बनाम मुस्लिम बना देने की कोशिश की जा रही है, जो बीते सालों में बीजेपी के लिए चुनावी सफलता का पैमाना बन गया है।
पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम काफी हद तक देश की राजनैतिक दिशा तय करेंगे। सबसे बड़ी जिम्मेदारी मतदाताओं की है, कि वो अपने आप को हिंदु-मुसलमान संझने की बजाय नागरिक समझें।
source: https://www.molitics.in/article/796/political-killings-and-bengal-elections-what-history-says
Sponsor Ads
Created on Mar 15th 2021 05:53. Viewed 199 times.