Democracy does not die today, the corpse has suffered a few more
by Tanvi Katyal Molitics - Media of Politicsलोकतंत्र आज नहीं मरी, लाश को कुछ लात और पड़े हैं
महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस द्वारा सीएम पद का शपथ लेने के साथ ही लोकतंत्र की हत्या के संदेश सोशल मीडिया पर तैरने लगे। असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और न जाने क्या-क्या विशेषण इस घटना को दिए जा रहे हैं।
लोकतंत्र की हत्या हुई कब?
लोकतंत्र की हत्या हुई।
ये ख़बर अब आम हो गई है। इसलिए इस ख़बर के अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देना
ज़रूरी हो गया है। ख़बर सुनते ही मन में आना चाहिए कि हत्या हुई तो हुई पर
हुई कब?
अब जब सवाल उठ ही गया तो अंदर तक गोता लगाना चाहिए। और अंदर तक गोता लगाने पर पता चलेगा कि लोकतंत्र की हत्या बहुत पहले ही हो चुकी थी। ये तो बर्फ़ के बीच रखी लोकतंत्र की लाश है जिसे देख-देख हम ख़ुश होते रहते हैं।
कैसे हुई लोकतंत्र की हत्या?
जम्मू
कश्मीर में भाजपा और पीडीपी, बिहर में राजद और जेडीयू, उत्तर प्रदेश में
सपा और बसपा - क्या ये गठबंधन ज़िंदा लोकतंत्र में स्वीकार्य होते? एक राज्य
को केंद्र शासित प्रदेश में तोड़ देने पर विपक्ष की लगभग चुप्पी क्या ज़िंदा
लोकतंत्र में स्वीकार्य होता। लाखों युवाओं की बेरोज़गारी, अर्थव्यवस्था की
भयंकर हालत, माइनॉरिटीज और दलितों के उपर लगातार बढ़ रहे हमलों पर विपक्ष
का मौन क्या ज़िंदा लोकतंत्र का सूचक है?
महाराष्ट्र में सबने मारे मृत लोकतंत्र को लात
ख़ैर, महाराष्ट्र पर
लौटते हैं। शुक्रवार रात तक लगभग तय हो चुका था कि बेटे को सीएम बनाने की
ज़िद पर अड़े उद्धव कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर खुद उस कुर्सी पर बैठ
जाएंगे। लेकिन शनिवार सुबह नींद खुली तो ANI के ट्वीट ने बताया कि अजीत
पवार के डिप्टी सीएम बनने के अलावा बाकी सब ख़बरें ग़लत निकली। देवेंद्र
फडणवीस ने अजीत पवार के समर्थन से महाराष्ट्र की सत्ता फिर जीत ली।
रात में कुछ ऐसा हुआ कि तमाम बिस्तर इधर-उधर हो गए। कुछ ऐसा हुआ कि ट्विटर और फेसबुक पर लोकतंत्र की हत्या का ख़्याल रक़्स करने लगा। लेकिन इन सभी ख़्यालियों को सोचना चाहिए कि हत्या रोज़ हो रही है। हत्यारे बदल रहे हैं। BJP और शिवसेना का सरकार न बनाना, कांग्रेस और NCP का शिवसेना को समर्थन देने की बात ये सब मरी हुई लोकतंत्र को मारे गए लात ही थे।
इस बात पर बहस हो सकती है कि लोकतंत्र को ज्यादा बुरी तरह किसने मारा पर एक बात अकाट्य है कि मार सब रहे हैं। जब-जब एक जनप्रतिनिधि जन सरोकारों से मुंह मोड़ता है या जनभावनाओं को ठेंगा दिखाता है, तब-तब मरी हुई लोकतंत्र की एक और मौत की शुरुआत हो जाती है। जनता जब ऐसे प्रतिनिधियों से सवाल पूछने की जगह उन्हें पूजने लगती है- तब ये मौत मुक़म्मल हो जाती है।
source: https://www.molitics.in/article/608/bjp-ncp-forms-government-in-maharastra
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Created on Nov 25th 2019 05:22. Viewed 322 times.