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विश्वनाथ मंदिर, खजुराहो

by Sacred Sites Places of Peace and Power

विश्वनाथ मंदिर हिंदू देवता, भगवान शिव को समर्पित है। मुग्ध कर देने वाला संगमरमर का शिवलिंग मुख्य देवता के रूप् में पूजा जाता है। धांगा देव द्वारा बनवाया गया यह मंदिर पश्चिमी समूह के मंदिरों के अंतर्गत आता है। यह मंदिर पंचायतन आकार में बना है जिसमें चारों कोनों पर चार मंदिर बीच में स्थित मुख्य मंदिर को घेरे हुए हैं।

मंदिर में चट्टानों से बनी 600 से अधिक मूर्तियाँ हैं। यहाँ भगवान ब्रह्मा की एक प्रभावशाली मूर्ति भी है। रक्षक के रूप में उरी सीढि़यों पर सिंह और दक्षिणी सीढि़यों पर हाथी की मूर्तियाँ होने से ब्रह्मा की मूर्ति भव्य दिखाई देती है।

 मंदिर की सुंदरता पत्थर की दीवार पर महिलाओं के सुंदर चित्रण में निहित है। बाहरी दीवारों पर शानदार नक्काशी इसकी सुंदर बनावट को अधिक आकर्षक बनाती है। यहाँ एक बड़े मंच पर बैठे हुए नंदी बैल की एक विशाल 6 फुट की मूर्ति है।



                                         विश्वनाथ मंदिर, खजुराहो      


खजुराहो प्रतिमाओं का प्रथम परिचय विश्वनाथ मंदिर को देखने से मिलता है, क्योंकि सामने की ओर से आते हुए यह मंदिर पहले आता है। इस मंदिर में 620 प्रतिमाएँ हैं। इन प्रतिमाओं का आकार 2' से 2', 6' तक ऊँचा है। मंदिर के भीतर की प्रतिमाएँ भव्यता एवं सुदरता का प्रतीक है। मंदिर की सुंदरता देखने वालों को प्रभावित करती है। यहाँ की आमंत्रण देती अप्सराएँ मन मोह लेती है। कुछ प्रतिमाएँ मन्मथ- अति का शिकार हैं। प्रतिमाओं में मन्मथ गोपनीय है। कंदारिया मंदिर के पूर्ववर्ती के उपनाम से जाने जाने वाले इस मंदिर में दो उप मंदिर, उत्तर-पूर्वी दक्षिण मुखी तथा दक्षिण पश्चिमी पूर्वोन्मुखी हैं। इन दोनों उप मंदिरों पर भी पट्टिका पर मिथुन प्रतिमाएँ अंकित की गयी हैं। इन मंदिरों के भीतर ही अर्द्धमंडप, मंडप, अंतराल, गर्भगृह तथा प्रदक्षिणापथ निर्मित है।

मंदिर के वितान तोरण तथा वातायण उत्कृष्ट हैं। वृक्षिका मूलतः 87 थीं, जिसमें अब केवल नीचे की छः ही बच पायी हैं। पार्श्व अलिंदों की अप्सराओं का सौंदर्य अद्वितीय है। वह सभी प्रेम की पात्र हैं। त्रिभंग मुद्राओं में त्रिआयामी यौवन से भरपुर रसमयी अप्सराएँ अत्यंत उत्कृष्टता से अंकित की गयी हैं। इन प्रतिमाओं को देखकर ऐसा लगता है कि ये अप्सराएँ सारे विश्व की सुंदरियों को मुकाबले के लिए नियंत्रण दे रही हैं। कालिदास की शकुंतला से भी बढ़कर जीवंत और शोखी इन सुंदर प्रतिमाओं में दिखाई देती है। इनके पाँव की थिरकन, जैसे मानव कानों में प्रतिध्वनित हो रही हो, जैसे घुंघरों से कान हृदय में आनंद भर रहे हों। मंदिर की ये प्रतिमाएँ देव- संयम और मानव धैर्य की परीक्षा लेती दिखती हैं।

 

मंदिर के द्वार शाखों पर मिथुन जागृतावस्था में है। इनके जागृतावस्था एवं सुप्तावस्था में कोई अंतर ही नहीं दिखाई देता है। विश्वनाथ मंदिर की स्थापत्य कला त्रयंग मंदिर प्रतिरथ और करणयुक्त है। प्रमुख नौ रथिकाएँ अधिष्ठान के ऊपरी बाह्य भाग पर अंकित हैं। सात रथिकाओं में गणेश की प्रतिमा दिखाई देती है। एक रथिका पर वीरभद्र विराजमान हैं। छोटी राथिकाओं पर मिथुन है। इनमें भ्रष्ट मिथुनों का अधिक्य पाया जाता है। मंदिर के उरु: श्रृंग की संख्या चार है तथा उपश्रृंग की संख्या सोलह है।

 

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Created on Feb 10th 2020 08:23. Viewed 241 times.

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