‘मस्जिदियाबिंद’ से ग्रसित रजत शर्मा को मजूदरों की रोटी नहीं उनके हाथ में बैग की फिक्र
by Tanvi Katyal Molitics - Media of Politicsभक्ति
का ये एक ऐसा काल है जहां आप जितनी नफरत बांट पाएंगे उतना ही अपने आका को
खुश कर पाएंगे। चरण-चुंबन के इस दौर में हमारे देश की तमाम विभूतियों ने
अपना स्थापित वजूद मिट्टी में मिलाकर चटुकारिता को स्वीकार किया. चटुकारिता
में भी होड़ मची तो कुछ लोग एकदम निम्न स्तर पर पहुंच गए। ऐसा ही कुछ
नजारा इंडिया टीवी पर देखने को मिल रहा है।
भारतीय मीडिया जगत में अपना नाम स्थापित कर चुके रजत शर्मा ने मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर उमड़ी दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ को लेकर ट्वीट किया, उन्होंने लिखा, ‘बांद्रा में जामा मस्जिद के बाहर इतनी बड़ी संख्या में लोगों का इकट्ठा चिंता की बात है, इन्हें किसने बुलाया? अगर ये लोग घर जाने के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए आए हैं तो उनके हाथों में सामान क्यों नहीं है?’
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इस ट्वीट में उन्होंने बांद्रा के रेलवे स्टेशन की जगह जामा मस्जिद लिखा है, दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ को उन्होंने मस्जिद से जोड़कर अपने मजहबी नफरत वाले मंसूबे दिखा दिए, जिस जामा मस्जिद का जिक्र रजत शर्मा ने अपने ट्वीट में किया है और इंडिया टीवी ने दिखाया है, वह बांद्रा स्टेशन से 270 किलोमीटर दूर है। स्टेशन के बगल एक मस्जिद है जिससे इस भीड़ का कोई मतलब ही नहीं। कहने का मतलब ये कि अगर इलाहाबाद जंक्शन के बाहर भीड़ लग जाए तो रजत शर्मा लिखेंगे इलाहाबाद रामजानकी मंदिर के बाहर भीड़ क्यों इकट्ठा हो गई।
रजत शर्मा ने मजदूरों के हाथों में बैग नहीं होने को लेकर भी सवाल उठाए, मतलब ये कि उन्हें मजदूरों के लिए हुए इंतजाम, प्रशासन की नाकामी नहीं दिखती, उन्हें बस अपने आका के खिलाफ साजिश दिखती है। उन्हें मजदूरों के हाथों में ब्रांडेड बैग देखने थे, उन्हें उनकी आंखो पर चश्मा देखना था, तब हो सकता है कि वह मान जाए कि मजदूर गांव जा रहा है।
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रजत शर्मा का न्यूज पढ़ने का तरीका एकदम बदल गया है, न्यूज बताने से ज्यादा अपना ओपिनियन ठूंस देते हैं, ‘ओह, कितना दुखद, शर्म नहीं आई, सपने में भी नहीं सोच सकता जैसे तमाम शब्दों के जरिए वह मुस्लिमों को कटघरे में खड़ा कर देते हैं। अक्सर अपने प्रोग्रामों में हिन्दू-मुस्लिम मुद्दें को ही तवज्जों देने वाले रजत शर्मा ने दूसरे वर्ग के दर्शकों को जॉम्बी बनाने के लिए जितना कुछ किया जा सकता है उसका कर रहे हैं। नफरत बांटने में वह जी न्यूज वाले सुधीर चौधरी के एकदम बराबर आ चुके हैं।
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मजदूरों की भीड़ को मस्जिद से जोड़ने वाले रजत शर्मा को पद्मश्री का ख्याल रखना चाहिए। कम से कम इतना तो मुझे पता है कि ये ऑवार्ड उन्हें सांप्रदायिक नफरत फैलाने के लिए नहीं मिला है। उन्हें गुजरात की भीड़, दिल्ली बस स्टैंड की भीड़, तमिलनाडु में खाने के लिए परेशान लोगों की भीड़ को एक ही नजरिए से देखने की जरूरत है, इस लॉकडाउन में मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या खाने को लेकर ही है, उसे जाति-सम्प्रदायों में न ही बांटिए तभी बेहतर है।
भारतीय मीडिया जगत में अपना नाम स्थापित कर चुके रजत शर्मा ने मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर उमड़ी दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ को लेकर ट्वीट किया, उन्होंने लिखा, ‘बांद्रा में जामा मस्जिद के बाहर इतनी बड़ी संख्या में लोगों का इकट्ठा चिंता की बात है, इन्हें किसने बुलाया? अगर ये लोग घर जाने के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए आए हैं तो उनके हाथों में सामान क्यों नहीं है?’
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इस ट्वीट में उन्होंने बांद्रा के रेलवे स्टेशन की जगह जामा मस्जिद लिखा है, दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ को उन्होंने मस्जिद से जोड़कर अपने मजहबी नफरत वाले मंसूबे दिखा दिए, जिस जामा मस्जिद का जिक्र रजत शर्मा ने अपने ट्वीट में किया है और इंडिया टीवी ने दिखाया है, वह बांद्रा स्टेशन से 270 किलोमीटर दूर है। स्टेशन के बगल एक मस्जिद है जिससे इस भीड़ का कोई मतलब ही नहीं। कहने का मतलब ये कि अगर इलाहाबाद जंक्शन के बाहर भीड़ लग जाए तो रजत शर्मा लिखेंगे इलाहाबाद रामजानकी मंदिर के बाहर भीड़ क्यों इकट्ठा हो गई।
रजत शर्मा ने मजदूरों के हाथों में बैग नहीं होने को लेकर भी सवाल उठाए, मतलब ये कि उन्हें मजदूरों के लिए हुए इंतजाम, प्रशासन की नाकामी नहीं दिखती, उन्हें बस अपने आका के खिलाफ साजिश दिखती है। उन्हें मजदूरों के हाथों में ब्रांडेड बैग देखने थे, उन्हें उनकी आंखो पर चश्मा देखना था, तब हो सकता है कि वह मान जाए कि मजदूर गांव जा रहा है।
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मजदूरों की भीड़ को मस्जिद से जोड़ने वाले रजत शर्मा को पद्मश्री का ख्याल रखना चाहिए। कम से कम इतना तो मुझे पता है कि ये ऑवार्ड उन्हें सांप्रदायिक नफरत फैलाने के लिए नहीं मिला है। उन्हें गुजरात की भीड़, दिल्ली बस स्टैंड की भीड़, तमिलनाडु में खाने के लिए परेशान लोगों की भीड़ को एक ही नजरिए से देखने की जरूरत है, इस लॉकडाउन में मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या खाने को लेकर ही है, उसे जाति-सम्प्रदायों में न ही बांटिए तभी बेहतर है।
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Created on Apr 17th 2020 02:31. Viewed 119 times.
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