JNU - ... finger is somewhere, but pointing somewhere
by Tanvi Katyal Molitics - Media of PoliticsJNU - ...है उंगली कहीं, पर इशारा कहीं
तो कौन ग़लत है -
- फीस हाइक के विरोध में खड़े जेएनयू के छात्र या
- उन छात्रों पर लाठीचार्ज़ करती पुलिस
अगर आपके पास सामान्य बौद्धिक क्षमता भी है तो आप लाठीचार्ज़ करती पुलिस को ग़लत मानेंगे। तर्कों में विश्वास कम है और बौद्धिकता को अलविदा कह चुके हैं तो छात्र भी ग़लत दिख सकते हैं।
पुलिस vs छात्रों की तस्वीर
एक तरफ़ डंडे बरसाती पुलिस और दूसरी तरफ नारे लगाती छात्रों की भीड़ - इस तस्वीर में समाज के दो धड़ों को एक दूसरे का दुश्मन दिखाया गया है। जो बिग बॉस इस पूरे खेल को चला रहा है वो यही चाहता है कि समाज इन दो धड़ों में बँटे। क्योंकि जितना बँटवारा होगा, समाज उतना ही कमज़ोर होता चला जाएगा। और समाज की कमज़ोरी ही बिग बॉस की ताकत बनेगी।
कैमरे पर बोलने से मना करने वाले कुछ पुलिसकर्मियों ने पहचान सुरक्षित रखने की शर्त पर बातचीत में स्वीकार किया है कि “सरकार और आला अधिकारी उनसे पाप करवा रही है।" एक पुलिसकर्मी ने कहा कि “बड़े-बड़े अधिकारी और नेता तो अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए विदेश भेज देते हैं या बड़ी-बड़ी प्राइवेट यूनीवर्सिटी में भेज देते हैं लेकिन हम जैसे ३०-३५ हज़ार कमाने वाले अपने बच्चों को कैसे पढ़ाएँ।”
पुलिस और छात्रों को दुश्मन के तौर पर दिखाता हुआ ये चित्र जानबूझ कर खींचा गया है। ताकि पुलिस के नाम पर भावनाओं को केंद्रीकृत किया जाए और विद्यार्थियों को विलेन साबित कर दिया जाए। पुलिस का विरोध करने वाले छात्रों को अराजक और कानून विरोधी बताकर इस छवि को मज़बूत किया जा सके।
निजीकरण की चौखट पर बेची जाएगी शिक्षा
बकौल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भारत पेट्रोलियम और एयर इंडिया मार्च 2020 तक बेचा जा चुका होगा। तेजस के साथ निजी रेल पटरी पर दौड़ने लगी है। बीएसएनएल और एमटीएनएल मृतप्राय हो गए हैं। सरकार की कार्यशैली से लगता है कि जो कुछ बेचा जा सकता है वो बेचा जाएगा - सरकार इस सिद्धांत पर काम कर रही है। शिक्षा सरकार की दृष्टि से एक बेचे जा सकने वाली सेवा है। अतः बेची जाएगी। भूलिए मत इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस के तहत ग्रीनफील्ड कैटेगरी में जियो यूनीवर्सिटी का नाम।
नए ब्रिटशर्स चाहते हैं शिक्षा में मैकाले नीति
मैकाले की शिक्षा नीति के बारे में ज़्यादातर लोगों ने पढ़ा-सुना होगा। ब्रिटिशर्स वह शिक्षा नीति इसलिए लाए ताकि भारतीयों को केवल क्लर्क बना कर छोड़ दिया जाए। पूँजीपति वर्ग के समर्थन से फली फूली सरकारें और पूंजीवादी व्यवस्था में विश्वास रखने वाले लोग आज के ब्रिटिशर्स हैं। जबकि ग़रीब, शोषित, वंचित आज के भारतीय। सो पूंजीवाद की हिमायती सरकार ग़रीबों को क्लर्क या उससे भी कहीं नीचे ही रखना चाहती है।
इसके लिए ज़रूरी है शिक्षा के अवसरों को वंचित वर्ग से दूर कर देना। यह तत्काल लिया जा सकने वाला फैसला नहीं है। इसके लिए माहौल बनाना पड़ेगा। ज़रूरतमंदों को विलेन साबित करना पड़ेगा। जिन्हें लगता है कि वो ज़रूरतमंद नहीं, उन्हें इस बात का यकीन दिलाया जाएगा ताकि ज़रूरतमंदों का विरोध समाज के बीच से ही हो। फूट डालो और राज करो की नीति पुरानी ज़रूर है लेकिन है बिल्कुल अचूक।
कुल मिलाकर -
“बड़े खेल की हैं बड़ी साज़िशें
है उंगली कहीं पर इशारा कहीं”
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Created on Nov 20th 2019 00:17. Viewed 137 times.