Why is it not safe to say that bjp lost
by Tanvi Katyal Molitics - Media of Politicsआप जीती तो, पर छोड़ गई कुछ सवाल!
- क्या जय श्री राम की जगह जय बजरंगबली सांप्रदायिक राजनीति को ही मजबूत नहीं करता है?
- क्या CAA और शाहीन बाग पर मौन बहुसंख्यक तुष्टिकरण का ही एक उदाहरण नहीं है?
- क्या डूब जाने के डर से धारा के साथ प्रवाह धारा को मौन सहमति नहीं है?
दिल्ली
चुनाव के परिणामों ने विमर्श के एक बड़े मैदान का निर्माण किया है। उपरोक्त
सवालों को सही जगह और जवाब भारत की राजनीति का भविष्य तय करेगी।
दिल्ली विधानसभा चुनावों के
परिणामों पर पूरे देश की नज़र थी। बीजेपी के कई सांसदों, बीजेपी या इसके
समर्थित राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों, गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के
आक्रामक प्रचार ने इन चुनावों का कौतूहल बढ़ा दिया था।
CAA के ख़िलाफ़ आंदोलन और उसके बाद केंद्र सरकार द्वारा उसे हिंदू-मुस्लिम बहस में बदल देने की कवायद ने इन चुनावों को बिल्कुल अलग रंग दे दिया।
लेकिन केजरीवाल ने एक-एक कदम फूंक कर रखा। CAA आंदोलनों पर मौन साधे रहे। पूछे जाने पर नेश्नल टेलीविजन पर हनुमान चालीसा गाने से परहेज़ नहीं किया। महसूस किया कि लोगों के सिर पर कौन सा नशा आसानी से चढ़ता है, और वह नशा बांटने लगे। मीडिया को उसी तरह प्रबंधित किया जैसा मोदी और बीजेपी अमूमन करती है।
इनके अलावा पानी, बिजली की सस्ती/मुफ़्त उपलब्धता और शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में किया गया काम केजरीवाल के पक्ष में माहौल तैयार कर चुके थे।
बेशक, दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को साकार करने की कोशिश की है। लेकिन वैकल्पिक राजनीति का मतलब केवल यही नहीं।
सामाजिक ढ़ांचे को लेकर आपकी सोच, अल्पसंख्यकों के लिए आपकी विचारधारा और फ़ासीवादी ताक़तों के ख़िलाफ़ लड़ने का आपका रवैया आपकी राजनैतिक विचारधारा को रेखांकित करेगी।
अब, जब पार्टी चुनावों की अग्निपरीक्षा को पार कर चुकी है तो ज़रूरी है कि वह आत्मावलोकन करे-
- क्या ये महज़ दिल्ली की पार्टी है?
- क्या केंद्र में मोदी, दिल्ली में केजरीवाल इस पार्टी की सच्ची आवाज़ है?
- क्या जामिया के स्टूडेंट्स पर पुलिस बर्बरता के ख़िलाफ़ खड़ा न होना पार्टी का वास्तविक स्वभाव है?
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Created on Feb 12th 2020 05:50. Viewed 170 times.