The story that was narrated after Modi's speech, but it is all!
by Tanvi Katyal Molitics - Media of Politicsप्रधानमंत्री 8 बजे भाषण देते है, भाषण समाप्त भी नहीं होता है कि लोगों की भीड़ गलियों की दुकानों पर जमा होने लगती है। किसी को आटा चाहिए किसी को दाल किसी को मसाले। डरे हुए लोग रोजमर्रा का राशन जमा करने दौड़ पड़ते है। उन्हें प्रधानमंत्री के अनुसार 21 दिनों तक यह लड़ाई लड़नी है।
हर दुकान के बाहर 50 से 60 लोग दिखाई पड़ते हैं। मौजपुर (दिल्ली) के कबीर नगर में गफूर चौक पर विपिन जनरल स्टोर है। जनरल स्टोर के मालिक 21 दिनों बाद शायद करोड़पति हो जाएं। घटें के हिसाब से लाला जी चीजों के दाम सुबह से ही बढ़ा रहे थे लेकिन प्रधानमंत्री जी के भाषण के बाद इन्होंने लम्बी छलांग लगाई।
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कल जो हाथी ब्रांड आटे का कट्टा 280 रुपये में दे रहे थे, अब वो 350 रुपये का है। इतना मंहगा क्यों दे रहे हो पूछने पर कहते हैं कि पीछे से ही मंहगा आया है। हर घंटे पीछे से उनको महंगा सामान मिला है। सिर्फ आटा ही मंहगा नहीं है बल्कि हर सामान आसमान छूती कीमतों पर बेचा जा रहा है।
परसों 15 किलो तेल के जिस टीन को 1400 रूपये में बेच रहे थे आज वो 1700 रूपये में है। लोग नहीं देख रहे कि कितने में क्या सामान लाला जी दे रहे है? बस लोगों को राशन जमा करना है अगले 21 दिनों तक उन्हें यह लड़ाई लड़नी है जिसका रास्ता लाला जी की दुकान से होकर गुजरता है।
यह सिर्फ एक विपिन जनरल स्टोर की कहानी नहीं है बल्कि हर गली में किसी ने किसी किराना स्टोर की लूट है जिसने 8 बजे के भाषण के बाद रफ्तार पकड़ ली। क्या 8 बजे का भाषण देने से पहले प्रधानमंत्री ने एक भी बार सोचा होगा कि भारत का गरीब आदमी किस तरह से पैसे का इंतजाम करके दुकानों की तरफ दौड़ा होगा?
प्रधानमंत्री देश के आम लोगों से बहुत दूर बैठते है। क्या इन लोगों की परेशानी उनकी कल्पनाशीलता में आती होगी कि कैसे कोई अवसरवादी इन लोगों की मजबूरी का फायदा उठा रहा है? क्या उन तक यह खबर पहुंचती होगी कि देश के इस गरीब आदमी का गला किसी छोटी सी गली का विपिन किराना स्टोर काट रहा होगा?
खाद्य रसद आपूर्ति मंत्री क्या इन दुकानदारों की जमाखोरी और मुनाफाखोरी को रोक सकते है? क्या उंचे पदों पर बैठे लोग इस गणित को समझ सकते है कि 280 रूपये में मिलने वाला 10 किलो आटा जब 350 का मिलता है तो आम आदमी पर क्या फर्क पड़ता होगा?
बाजार बंद है सिर्फ गली मोहल्लों की दुकानें ही खुली। रात 12 बजे तक यह लूट जमकर हुई। डरे हुए लोग सवाल नहीं करते कि आटा दाल चावल इतना मंहगा क्यों है? उनके लिए सिर्फ जिंदा रहना ही सबसे बड़ी जीत होता है। 8 बजे के बाद देश में लोगों को आसानी से डराया जा सकता है इसके कई सफल नमूने हमने पिछली बार भी देखें है।
सरकारें सिर्फ हैंडिग फ्लैश करती है। वह शीर्षक दिखाकर लोगों के दिल जीत लेती है। क्या पता किसी रात 8 बजे टेलीविजन से कोई मुनादी सुनाई दे और सारा देश सड़कों पर नाचता दिखाई दे! लेकिन इस नाच-गाने और घंटे-घड़ियाल के शोर के बीच 8 बजे घोषणा करने वालो को सोचना चाहिए कि किसी डरे हुए गरीब का मातम किसी मुनाफाखोर बनिए के लिए शादियानों में ना तब्दील हो जाएं!
8 बजे की घोषणा करने वालों को अगर यह समझ आ गया तो फिर गली की छोटी सी दुकान पर बैठा हुआ कोई विपिन किराने वाला किसी गरीब का गला नहीं काट रहा होगा!
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Created on Mar 27th 2020 07:34. Viewed 174 times.