Rahim Ke dohe in Hindi

Posted by Dev Tiwari
1
Nov 4, 2015
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All Rahim Ke dohe in Hindi

तैं रहीम मन आपुनो, कीन्‍हों चारु चकोर।
 निसि बासर लागो रहै, कृष्‍णचंद्र की ओर॥1॥
 अच्‍युत-चरण-तरंगिणी, शिव-सिर-मालति-माल।
 हरि न बनायो सुरसरी, कीजो इंदव-भाल॥2॥
 अधम वचन काको फल्‍यो, बैठि ताड़ की छाँह।
 रहिमन काम न आय है, ये नीरस जग माँह॥3॥
 अन्‍तर दाव लगी रहै, धुआँ न प्रगटै सोइ।
 कै जिय आपन जानहीं, कै जिहि बीती होइ॥4॥
 अनकीन्‍हीं बातैं करै, सोवत जागे जोय।
 ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न होय॥5॥
 अनुचित उचित रहीम लघु, क‍रहिं बड़ेन के जोर।
 ज्‍यों ससि के संजोग तें, पचवत आगि चकोर॥6॥
 अनुचित वचन न मानिए जदपि गुराइसु गाढ़ि।
 है र‍हीम रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढ़ि॥7॥
 अब रहीम चुप करि रहउ, समुझि दिनन कर फेर।
 जब दिन नीके आइ हैं बनत न लगि है देर॥8॥
 अब रहीम मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम।
 साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥9॥
 अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि।
 रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि, खोजत फिरिए काहि॥10॥

 अमृत ऐसे वचन में, रहिमन रिस की गाँस।
 जैसे मिसिरिहु में मिली, निरस बाँस की फाँस॥11॥
 अरज गरज मानैं नहीं, रहिमन ए जन चारि।
 रिनिया, राजा, माँगता, काम आतुरी नारि॥12॥
 असमय परे रहीम कहि, माँगि जात तजि लाज।
 ज्‍यों लछमन माँगन गये, पारासर के नाज॥13॥
 आदर घटे नरेस ढिंग, बसे रहे कछु नाहिं।
 जो रहीम कोटिन मिले, धिग जीवन जग माहिं॥14॥
 आप न काहू काम के, डार पात फल फूल।
 औरन को रोकत फिरैं, रहिमन पेड़ बबूल॥15॥
 आवत काज रहीम कहि, गाढ़े बंधु सनेह।
 जीरन होत न पेड़ ज्‍यौं, थामे बरै बरेह॥16॥
 उरग, तुरंग, नारी, नृपति, नीच जाति, हथियार।
 रहिमन इन्‍हें सँभारिए, पलटत लगै न बार॥17॥
 ऊगत जाही किरन सों अथवत ताही कॉंति।
 त्‍यौं रहीम सुख दुख सवै, बढ़त एक ही भाँति॥18॥
 एक उदर दो चोंच है, पंछी एक कुरंड।
 कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो पिंड॥19॥
 एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
 रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥20॥
 ए रहीम दर दर फिरहिं, माँगि मधुकरी खाहिं।
 यारो यारी छो‍ड़िये वे रहीम अब नाहिं॥21॥
 ओछो काम बड़े करैं तौ न बड़ाई होय।
 ज्‍यों रहीम हनुमंत को, गिरधर कहै न कोय॥22॥
 अंजन दियो तो किरकिरी, सुरमा दियो न जाय।
 जिन आँखिन सों हरि लख्‍यो, रहिमन बलि बलि जाय॥23॥
 अंड न बौड़ रहीम कहि, देखि सचिक्‍कन पान।
 हस्‍ती-ढक्‍का, कुल्‍हड़िन, सहैं ते तरुवर आन॥24॥
 कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्‍वाति एक गुन तीन।
 जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन॥25॥
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