Educated society is not a burden but a boon
by Tanvi Katyal Molitics - Media of Politicsशिक्षित समाज बोझ नहीं वरदान है
शिक्षा पर व्यय - जीडीपी में इज़ाफ़ा
ढाका यूनिवर्सिटी में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग के एक प्रोफेसर ने शिक्षा पर व्यय और आर्थिक विकास के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन के बाद एक पेपर लिखा- ‘पब्लिक एक्सपेंडिचर ऑन एजुकेशन एंड इकोनॉमिक ग्रोथ: द केस ऑफ बांग्लादेश.’ पेपर के मुताबिक शिक्षा के बजट में एक प्रतिशत की वृद्धि प्रति व्यक्ति जीडीपी में 0.34 फ़ीसदी इज़ाफ़ा लाती है।
अगर सरकार इस पेपर को पढ़ती और शिक्षित समाज के महत्व को समझती तो जेएनयू को लोगों की पहुँच से दूर करने की कोशिशें न होती। इस विश्वविद्यालय को कभी बदनाम नहीं किया जाता। कभी जिन लोगों को जेएनयू कुछ सैक्स का अड्डा दिख रहा था, आज उन्हीं और उन जैसे ही कुछ लोगों को यह विश्वविद्यालय मुफ्तख़ोरी का गढ़ नहीं लगता।
पिछले कुछ दिनों से JNU में आंदोलन चल रहा है। आंदोलन की वजह - अलग-अलग मदों में फीस हाइक। छात्र-छात्राओं और एल्यूमिनाईज़ का कहना था कि इन मदों में वृद्धि करके शिक्षा को आम लोगों की पहुँच से दूर किए जाने की कोशिश हो रही है। आंदोलन बढ़ा तो मानव संसाधन मंत्रालय की तरफ से रोलबैक का एक ट्वीट आया।
फीस में आंशिक वापसी के सहारे आंदोलन को मंद करने के प्रयास
ख़बर चली की जेएनयू में फीस हाइक को लेकर चल रहे आंदोलन को देखते हुए इस फैसले को वापिस ले लिया गया है। लेकिन छात्र-छात्राओं का आंदोलन रुका नहीं। उनसे बातचीत कर हमने पाया कि फीस वापिस लेने की ये खबर भ्रामक थी। मतलब बढ़ोतरी हुई थी रूम रेंट के साथ-साथ सुविधा शुल्क और प्रपोज़ल्स में जबकि कम किया गया केवल रूम रेंट, वो भी आंशिक तौर पर।
नतीज़ा - आंदोलन चलता रहा। मांग थी- व्यवस्था को पहले जैसा किया जाए। सवाल उठता है कि आखिर छात्र-छात्राओं को पहले वाली व्यवस्था क्यों चाहिए और प्रशासन क्यों फीस वृद्धि करना चाहता है? पहले सवाल का जवाब दूसरे सवाल के जवाब में छिपा हुआ है।
जेएनयू को जानबूझकर किया जा रहा है बदनाम
दरअसल, पिछले पाँच-छः सालों में जेएनयू को बदनाम करने की तमाम कोशिशे की गई। यहाँ के छात्र-छात्राओं को एंटी-नेशनल कहा जाने लगा। गोदी मीडिया ने जेएनयू को देशद्रोह के अड्डे के तौर पर प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हालात ये हो गए कि आम लोगों को भी जेएनयू दुश्मन दिखने लगा। जेएनयू से पीएचडी कर रहे छात्र उन्हें टाइमपास करते दिखे और कड़ी मेहनत से इस विवि में प्रवेश पाने वाले युवा मुफ़्तखोर।
गौरतलब है कि जेएनयू में पूरा हिंदुस्तान दिखता है। देश के लगभग हर कोने से प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएँ इस विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए आते हैं। कम फीस, कम हॉस्टल किराया और सब्सिडाइज़्ड दाम पर मिलने वाले सामानों के कारण ग़रीब परिवारों को अपने बच्चों को इस परिसर में भेजते हुए सोचना नहीं पड़ता।
कहीं न कहीं सरकार ने इस भाव को प्रसार दिया है। इसी भाव के कारण संभावना पैदा होती है कि फीस हाइक के माध्यम से जेएनयू की शिक्षा को गरीब परिवारों से दूर किया जा रहा है। ताकि शिक्षा को खत्म करके सवाल को खत्म किया जा सके। तर्कों को मारा जा सके और शासन की रोटियाँ सेंकी जा सके।
अगर फीस हाइक के पीछे सरकार का तर्क अर्थव्यवस्था पर बोझ है तब भी उसे समझना चाहिए कि अच्छी शिक्षा से लैस युवा अर्थव्यवस्था के लिए वरदान ही साबित हो सकते हैं।
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Created on Nov 19th 2019 01:22. Viewed 165 times.