'स्त्री शरीर उपभोग की वस्तु नहीं है', महिलाओं को देवी समझने वाला समाज इसे कब समझेगा?
by Tanvi Katyal Molitics - Media of Politicsहर वर्ष की भांति इसबार भी दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस मनाया जा रहा है। एकदूसरे को बधाई देते वक्त लोग श्रमिक शब्द का प्रयोग नहीं करते। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। आपको पता है क्यों मनाया जाता है ये दिन। नहीं पता। तो पता क्या है। अच्छा आपको पता होगा कि इसदिन महिलाओं के लिए रेस्टोरेंट और मॉल में छूट मिलती है। महिलाएं इसदिन अपने सौदर्य यानी सुंदरता का प्रदर्शन करती हैं। नहीं भाई। ये सब नहीं है। महिला दिवस तो स्त्रियों के अधिकारों की लड़ाई का उत्सव मनाने का दिन है। आज हम आपको कुछ ऐसी जरूरी बातें बताएंगे जो आपतक वाट्सऐप के जरिए पहुंची बातों की का काट है।
जो काम आप करते हैं वहीं काम महिलाएं करती हैं ऐसे में उन्हें समान वेतन मिलना चाहिए लेकिन नहीं मिलता। क्यों। क्योंकि वह महिला हैं. ये हम नहीं बल्कि एनएसएसओ की रिपोर्ट बताती है। रिपोर्ट के अनुसार भारत मे महिलाओं को पुरुषों की तुलना में एक ही काम के लिए औसतन 40 फीसदी से कम वेतन मिलता है। आपको नहीं पता होगा कि दुनिया के कुल शारीरिक श्रम का 60 फीसदी करने के बावजूद महिलाओं के हाथ में दुनिया की मात्र 15 फीसदी संपत्ति है। मतलब 85 फीसदी संपत्ति पर आज भी पुरुषों का अधिकार है। ऐसा क्यों है इसपर आप खुद विचार करिए। अपना ही घर देख लीजिए। कितनी संपत्तियां मां-बहन और दादी के नाम है। जवाब मिल जाएगा।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दस सालों में महिलाओं के प्रति अपराध दो गुना बढ़ गए। 2011 जनगणना के अनुसार भारत में एक हजार पुरुषों के मुकाबले 919 महिलाएं हैं। हरियाणा जैसे शिक्षित राज्यों में चाइल्ड सेक्स रेशियो तो डरावना है। आप रेलवे, बस या फिर मेट्रो स्टेशन, स्कूल-कॉलेज, पार्क, बाजार या फिर कहीं भी चले जाइए आपको 20-25 फीसदी ही महिलाएं दिखेंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत दुनिया के सबसे अनसेफ देशों में गिना जाता है।
महिलाओं के प्रति हिंसा करने वाले उसी समृ्द्ध समाज के हैं जो महिला दिवस पर स्त्रियों को देवी का दर्जा देते हुए वाट्सएप फार्वर्ड कर रहे हैं। वाट्सएप पर आई बधाईयों से भावविभोर हो चुकी लड़कियों व महिलाओं को बताना चाहिए कि उन्हें पुरुष कुछ नहीं समझते। उनके नौकरी करने या न करने के फैसलों पर भी पुरुषों का ही मत हावी रहता है। देश में तो जेंडर के हिसाब से नौकरी मिलती है। कॉल सेंटर में काम या फिर अटेंडेट का काम, इसके लिए उन महिलाओं को रखा जाता है जो सुंदर हो और उनकी आवाज मधुर हो। आपका टैलेंट प्राथमिकताओं में दूसरे नंबर पर आता है। एक सच्चाई ये भी है कि देश की करोड़ों लड़कियां इसलिए आगे नहीं पढ़ पाती क्योंकि उन्हें रास्ते में छेड़छाड़ या फिर फब्तिया कसे जाने का डर रहता है। ध्यान रहे ये सिर्फ डर नहीं बल्कि कड़वी सच्चाई है।
अब सवाल है कि महिला दिवस पर क्या नहीं करना है।
- भइया ये मदर्स डे या वेलेंटाइन दिवस तो है नहीं इसलिए गिफ्ट, फूल, फैंसी ड्रेस को अपने घर पर ऱखिए। स्त्री दिवस अब तक हासिल की गई जीतों का उत्सव मनाने का दिन है।
- जोर से हंसने, कपड़े पहनने, मोबाइल फोन रखने पर चरित्र पर सवाल उठाने वाली मानसिकता को त्याग देने का दिन है।
- ऐसे वाट्सऐप मैसेज फॉरवर्ड न करें जिसमें महिलाओं को वही सेक्सिस्ट और दकियानूसी तरीके से गौरवान्वित किया गया हो।
- स्त्रियों को बच्चा संभालते, नौकरी करते या फिर घर का संभालते हुए सुपरवुमन के रूप में ग्लोरीफाई न करें।
ध्यान रहे ये स्त्री बनाम पुरुष का मसला नहीं बल्कि महिलाओं को समान्य इंसान माने जाने की लड़ाई है।
आखिरी बात, महिलाओं की असमानता उनकी अत्याधिक भावुकता में छिपी है। गोपालगंज के पूर्व आईपीएस ध्रुव गुप्त करते हैं कि दुनिया की आधी आबादी को अपनी भावुकता से मुक्त होकर यथार्थ की जमीन परखनी होगी। उन्हें महिमामंडन की नहीं, स्त्री-सुलभ शालीनता के साथ स्वतंत्र सोच, स्वतंत्र व्यक्तित्व और जरा आक्रमकता की जरूरत है। स्त्री का जीवन कैसा हो इसे तय करना का अधिकार स्त्री के सिवा किसी और को नहीं है। आखिरी बात मैं फिर से दोहरा रहा हूं। स्त्री का जीवन कैसा हो, इसे तय करने का अधिकार स्त्री के सिवा किसी और को नहीं हो।
source: https://www.molitics.in/article/793/international-womens-day-status-of-women-in-india
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Created on Mar 9th 2021 03:18. Viewed 181 times.