बजरंगबली के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बाते जिन्हें शायद आप नहीं जानते हो
दुनिया चले ना श्री राम के बिना, राम जी चले ना हनुमान के बिना…। भगवान हनुमान को रुद्र के ग्यारहवा अवतार माना गया हैं। यही वजह है कि अनोखी शिव लीलाओं की तरह ही हनुमानजी से जुड़े सारे पौराणिक प्रसंग उनकी शक्तियो को उजागर करते हैं। शास्त्रों में सोने की तरह तेजस्वी व चट्टान जैसा मजबूत शरीर वाले, सारे गुणों रूपी निधियों के स्वामी, ज्ञानी, राम के परम भक्त जैसे श्रीहनुमान की महिमा के कई पहलू उजागर हैं तो आइए जानें उनके कुछ ऐसी बाते जो शायद आप नहीं जानते होगें।

एक बार हुनमान जी को भी श्री राम ने पंक्ति में बैठने का आदेश दिया। हनुमान जी बैठ तो गए पंरतु आदत ऐसी थी की राम के खाने के उपरांत ही सभी लोग भोजन खाते थे। आज श्री राम के आदेश से पहले खाना पड़ रहा था।माता जानकी भोजन का ढेर परोसती जा रही थी पर हनुमान का पेट ही नहीं भर रहा था। सीता जी कुछ समय तक तो उन्हें भोजन परोसती रही फिर समझ गई इस तरह से तो हनुमान जी का पेट नहीं भरेगा। उन्होंने तुलसी के एक पत्ते पर राम नाम लिखा और भोजन के साथ हनुमान जी को परोस दिया। तुलसी पत्र खाते ही हनुमान जी को संतुष्टी मिली और वह भोजन खा कर उठ खड़े हुए। भगवान शिव शंकर ने प्रसन्न होकर हनुमान को आशीर्वाद दिया कि आप की राम भक्ति युगों तक याद की जाएगी और आप संकट मोचन कहलाएंगे।

एक बार जब भगवान शिव ने माता पार्वती की इच्छा से कुबेर से सोने का महल बनवाया, किंतु ब्राह्मण का वेश रखकर आए अपने भक्त रावण द्वारा मांगने पर यह महल, माता पार्वती सहित दान कर दिया। इस मां पार्वती नाराज हुई और शिव ने उनको मनाने के लिए वचन दिया की त्रेतायुग में मैं वानर रूप हनुमान का अवतार लूंगा उस समय तुम मेरी पूंछ बन जाना। जब मैं माता सीता की खोज में इसी सोने के महल यानी लंका जाऊंगा तो तुम पूंछ के रूप में लंका को आग लगाकर रावण को दण्डित करना। ये प्रसंग भी शिव के श्री हनुमान अवतार और लंकादहन का एक कारण माना जाता है।

हनुमान जी के बहुत दुर्लभ रूपों में से एक है, पंचमुखी रूप। ऐसी मान्यता है कि राक्षसों को मारने के लिए भगवान हनुमन को ये रूप लेना पड़ा था। माता सीता ने हनुमान जी को परखते हुए कहा कि क्या आपके सम्पूर्ण शरीर से भी राम नाम की ध्वनि आती है? तब हनुमान जी ने अपना एक रोम उखाड़ा और माता सीता को दिया।

माता सीता ने जब उसे कान पर लगाया तो उस रोम में से भी राम नाम की ध्वनि आ रही थी। माता सीता तथा लोगों के विश्वास को और ज्यादा पुख्ता करने के लिए हनुमान जी ने अपनी छाती चीर कर हृदय में बसे राम और सीता की छवि सभा में उपस्थित लोगों को दिखाई। सभा में मौजूद सभी महानुभाव हक्के-बक्के रह गए। भक्ति की इस पराकाष्ठा को देखकर भगवान राम ने हनुमान जी गले से लगा लिया।

राज्याभिषेक के बाद अब वक्त था उन लोगों को उपहार देने का जिन्होंने प्रभु भक्ति का परिचय दिया था। जब हनुमान की बारी आई तब भगवान राम ने अत्यंत मूल्यवान मोतियों की माला अपने गले से उतारकर हनुमान जी को दी,जिसका मूल्य बहुत ज्यादा था। लेकिन इतनी मूल्यवान माला होने के बावजूद भी हनुमान जी ने उसे अपने दांतों से तोड़ दिया और एक-एक मोती लेकर बड़े ध्यान से देखने लगे। सभागार में मौजूद सभी लोग हनुमान के इस व्यवहार से अचंभित हो गए। माता सीता ने उनसे इसका कारण पूछा ”इतनी मूल्यवान माला आपने ऐसे क्यों तोड़ डाली?” इस पर हनुमान जी ने उत्तर दिया कि जिस पदार्थ से उन्हें राम नाम की ध्वनि नहीं सुनाई देती वह वस्तु उनके लिए व्यर्थ है।

हनुमान जी को सिंदूर बहुत ही प्रिय है इसके पीछे ये कारण बताया जाता है कि एक दिन भगवान हनुमान जी माता सीता के कक्ष में पहुंचे उन्होंने देखा माता लाल रंग की कोई चीज मांग में सजा रही है । हनुमान जी ने जब माता से पूछा तब माता ने कहा कि इसे लगाने से प्रभु राम की आयु बढ़ती है और प्रभु का स्नेह प्राप्त होता है। तब हनुमान जी ने सोचा जब माता इतना सा सिंदूर लगा कर प्रभु का इतना स्नेह प्राप्त कर रही है तो अगर मैं इनसे ज्यादा लगाऊं तो मुझे प्रभु का स्नेह ,प्यार और ज्यादा प्राप्त होगा और प्रभु की आयु भी लंबी होगी। ये सोच कर उन्होनें अपने सारे शरीर में सिंदूर का लेप लगा लिया। इसलिए कहा जाता है कि भगवान हनुमान को सिंदूर लगाना बहुत पंसद हैं।

श्री राम कथा के अद्भुत श्रोता हनुमान जी अयोध्या छोड़ कर श्री राम बैकुठ जाने लगे। हनुमान जी साथ में नहीं गए, क्योंकि बैकुंठ जा कर राम कथा सुनने को नहीं मिलती।इसलिए पृथ्वी पर जहां कहीं, जब कभी राम कथा होती है, हनुमान जी, किसी न किसी रूप में, वहां अवश्य पहुंचते हैं और पूरी कथा सुनते हैं।

छह विभूतियां हनुमान जी को अपना पुत्र मानती हैं। हनुमान जी भगवान शंकर के अवतार हैं, वायु के आत्मज हैं, अंजनी के पुत्र हैं, केसरी नंदन हैं, सीता और राम के अपनाये हुए आज्ञाकारी पुत्र हैं। हनुमान जी की दृष्टि सदैव श्री राम के चरणों पर केंद्रित रहती है। सूर्य देव उनके गुरु हैं। जो काम श्री राम नहीं कर सके, उसे हनुमान जी, उनका नाम लेते हुए, कर कर गये।

श्री राम ने पुल बांध कर समुद्र को पार किया। लेकिन हनुमान जी श्री राम का नाम ले कर बिना पुल के, स्वतः ही, समुद्र पार कर गये। रावण के पास एक अमर राक्षसों की सेना थी। श्री राम बडे़ चिंतित थे कि ऐसी सेना को तो जीता नहीं जा सकता। तब क्या किया जाए? हनुमान जी को भगवान राम की चिंता का कारण मालूम हुआ। उन्होंने यह समस्या तुरंत आसानी से हल कर दी। सारी अमर सेना को एक-एक कर के पूंछ में लपेट कर आसमान में फेंक दिया और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर कर दिया, जहां से वह फिर पृथ्वी पर वापिस नहीं आ सकते थे।

अयोध्या में हनुमान जी ही भगवान राम के सारे काम करते थे। तीनों भाइयों ने मिल कर सारे काम आपस में बांट लिये और हनुमान जी श्री राम की सेवा से वंचित हो गये। जम्हाई लेते समय एक बार श्री राम का मुख खुला ही रह गया। सारे प्रयत्न किये गये, लेकिन मुंह बंद नहीं हुआ। गुरुदेव वशिष्ठ के कहने पर हनुमान जी को बुलाया गया। उन्होंने चुटकी बजायी और मुंह बंद हो गया। तीनों भाई सेवा से हट गये। हनुमान जी को पुनः सेवा करने का अवसर मिल गया।

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