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उध्र्व (Vertical) मीनू - ज्ञानवर्धक एवं सूचनाप्रद
शिक्षा की आम धारणा प्रमाण पत्र वाली शिक्षा की ही है। मनुष्य के अन्दर बहुत से ऐसे गुण भी प्रकृति प्रदत्त होते हैं जिनके बल पर वह अपना एक अलग मार्ग व पहचान स्थापित करता है। सामान्यतः विद्यार्थी वही पढ़ना चाहते हैं जिससे वे अपनी परीक्षा अच्छे से उत्तीर्ण कर लें। भले ही वे बाकी समय अन्य मनोरंजन के साधनों में खर्च करे लेकिन अपने विषय से हटकर अन्य ज्ञान को ग्रहण करना उनके मार्ग से विपरीत है, ऐसी ही धारणा ने उन्हें, उनके जीवन को संघर्षमय और अंधकारमय बना दिया है। जबकि उन्हें जानना चाहिए कि जिन लोगों ने मानव को यहाँ तक संस्कारित कर विकसित किया है। वे प्रमाण पत्र वाली शिक्षा नहीं बल्कि एक अलग ही समझ रखने व अनुभव करने वाले थे। ये ”समझ“ व ”अनुभव“ ही सत्य शिक्षा है। यह संसार ऐसे ही लोगों की कृति रही है। ज्ञान कभी क्षति नहीं पहुँचाता, वह जीवन में हर समय आपका मार्गदर्शन करता है। राष्ट्र निर्माण के वेबसाइट पर बहुत सी ऐसी ज्ञानवर्धक सूचनाएँ मुफ्त में उपलब्ध हैं जो इसी संसार के मानव समाज के ही है। वेबसाइट का उध्र्व मीनू ऐसी ही सूचनाओं से भरा है। सामाजिक व वैश्विक मनुष्य बनने के लिए कम से कम ये भी जानना आवश्यक है। प्रमाण पत्र वाली शिक्षा से रोजगार तो पाया जा सकता है परन्तु वो कर्ज नहीं मिटाया जा सकता जो आपने जन्म लेकर प्रकृति द्वारा मुफ्त में पा रहे हैं।
Dec 30th 2014 21:40   
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“जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश के भिन्न-भिन्न उपयोग है उसी प्रकार शास्त्र के भी भिन्न-भिन्न उपयोग होते हैं। कोई राजनीति करता है, कोई ज्ञानी बनता है, कोई समाज निर्माण करता है, कोई पुनः व्याख्या कर गुरू बन जाता है। और इन सबसे शास्त्राकार को कोई मतलब नहीं होता जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश का उपयोग कर लेने से सूर्य को कोई मतलब नहीं होता।”
- कल्कि अवतार
Jun 20th 2015 10:42   
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ईश्वर के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए
एक प्रभु - सूर्य
देश के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए
एक देश - विश्व
धर्म के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए
एक धर्म - प्रेम
कर्म के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए
एक कर्म - सेवा
जाति के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए
एक जाति - मानव
निर्णय आपके पास
एकता का प्रयास या अनेकता का विकास
Jun 20th 2015 10:43   
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”किसी देश का संविधान, उस देश के स्वाभिमान का शास्त्र तब तक नहीं हो सकता जब तक उस देश की मूल भावना का शिक्षा पाठ्यक्रम उसका अंग न हो। इस प्रकार भारत देश का संविधान भारत देश का शास्त्र नहीं है। संविधान को भारत का शास्त्र बनाने के लिए भारत की मूल भावना के अनुरूप नागरिक निर्माण के शिक्षा पाठ्यक्रम को संविधान के अंग के रूप में शामिल करना होगा। जबकि राष्ट्रीय संविधान और राष्ट्रीय शास्त्र के लिए हमें विश्व के स्तर पर देखना होगा क्योंकि देश तो अनेक हैं राष्ट्र केवल एक विश्व है, यह धरती है, यह पृथ्वी है। भारत को विश्व गुरू बनने का अन्तिम रास्ता यह है कि वह अपने संविधान को वैश्विक स्तर पर विचार कर उसमें विश्व शिक्षा पाठ्यक्रम को शामिल करे। यह कार्य उसी दिशा की ओर एक पहल है, एक मार्ग है और उस उम्मीद का एक हल है। राष्ट्रीयता की परिभाषा व नागरिक कर्तव्य के निर्धारण का मार्ग है। जिस पर विचार करने का मार्ग खुला हुआ है।“
- लव कुश सिंह ”विश्वमानव“
Jun 20th 2015 10:45   
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Bharat dwara INTERNATIONAL YOGA DAY ke bad INTERNATIONAL MEDITATION DAY (BUDDH) china dwara prastavit. fir Bharat dwara INERNATIONAL CONSCIOUSNESS DAY (KRISHNA). ant me WCM-TLM-SHYAM.C human manufacturing technology. - KALKI AVATAR
Jun 21st 2015 02:03   
Joe Henning Professional  Your Profit Connection
@Lava Kush Singh, do you realize the language supposed to be used on this site is EnglisH? If you didn't now you do...
Jun 28th 2015 16:03   
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हमारे प्रकट होने का समय हो रहा दोस्तो-
ये घटना क्रम क्या बता रहा है?
वर्तमान समय - इतिहास लौट चुका है।

111 वर्ष पूर्व 4 जुलाई, 1902 ई0 को आम आदमी के रूप में नरेन्द्र नाथ दत्त और विचार से सर्वोच्च विश्वमानव के रूप में स्वामी विवेकानन्द ब्रह्मलीन हुये थे। उन्होंने कहा था -”मन में ऐसे भाव उदय होते हैं कि यदि जगत् के दुःख दूर करने के लिए मुझे सहस्त्रों बार जन्म लेना पड़े तो भी मैं तैयार हूँ। इससे यदि किसी का तनिक भी दुःख दूर हो, तो वह मैं करूंगा और ऐसा भी मन में आता है कि केवल अपनी ही मुक्ति से क्या होगा। सबको साथ लेकर उस मार्ग पर जाना होगा।“ - (विवेकानन्द जी के संग में, पृ0-67, राम कष्ृण मिशन प्रकाशन)
वर्तमान में उनके तीन रूप व्यक्त हो चुके हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. भारत के सर्वोच्च पद पर सुशोभित श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत, उनके संस्कृति को लेकर।
2. भारत के सर्वोच्च अधिकार के पद पर सुशोभित श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत, उनके नाम को लेकर।
3. भारत के आम आदमी के रूप में श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“, भारत, उनके विचार ”विश्व-बन्धुत्व“ एवं ”वेदान्त की व्यवहारिकता“ की स्थापना के लिए शासनिक प्रणाली के अनुसार स्थापना स्तर तक की प्रक्रिया को लेकर।
भारत सरकार व उसके अनेक मंत्रालयों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन के प्रमाण पत्र आई.एस.ओ-9000 (ISO-9000) गुणवत्ता का प्रमाण पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया प्रारम्भ।

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ं द्वारा विश्व के एकीकरण के प्रथम चरण - मानसिक एकीकरण के लिए नागरिकों के गुणवत्ता का विश्वमानक-0 श्रृंखला (WS-0) आविष्कृत।
Aug 27th 2016 02:15   
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