चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये। दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ॥

Posted by Jitender G.
2
Mar 28, 2021
10 Views
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं, जब उन्होंने चलती हुई चक्की (गेहूं पीसने या दाल पीसने में इस्तेमाल किया जाने वाला यंत्र) को देखा तो वह रोने लगे क्योंकि वह देखते हैं की किस प्रकार दो पत्थरों के पहियों के निरंतर आपसी घर्षण के बीच कोई भी गेहूं का दाना या दाल साबूत नहीं रह जाती, वह टूटकर या पिस कर आंटे में परिवर्तित हो रहे हैं। कबीर दास जी अपने इस दोहे से कहना चाहते है कि जीवन के इस संघर्ष में लोग किस प्रकार अपने जीवन का असली उद्देश्य खोते जा रहे हैं, सभी लोग जीवन की भौतिक वस्तुओं को पाने के लिए मेहनत...
Comments
avatar
Please sign in to add comment.