बुद्धि से ही बल है

Posted by Soch Aapki
9
Aug 21, 2015
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एक बार की बात है एक तालाब किनारे एक बगुला रहता था। तालाब में मछलियाँ व अन्य जीव-जन्तुओं का शिकार करके अपना जीवन-यापन करता था। काफी दिन बीत जाने के बाद अब बगुला बूढ़ा हो गया था और वह पहले की तरह शिकार भी नहीं कर सकता था। बगुला अपने अंतिम दिनों में था क्योंकि वो बहुत बूढा हो गया था और इसी कारण वो मछलियाँ पकड़ने में असमर्थ हो गया। एक दिन अचानक उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने एक नाटक किया, अब वह उदास रहने लगा और व्याकुल हो कर आंसू बहा रहा था कि एक मेंढक ने उसे देखकर उसके रोने का कारन पूछा और बोला कि भाई क्या बात है आजकल तो आपने खाना पीना भी छोड़ दिया है।

इस पर बगुले ने बड़ी चतुराई से उत्तर दिया और कहा बेटा मेरा जन्म इसी तालाब के किनारे ही हुआ था इसलिए मुझे इस जगह से और यंहा रहने वाले जीवों बहुत लगाव है लेकिन अब सुना है कि यंहा पर बारह वर्षों तक पानी नहीं बरसेगा इसलिए मेरा मन दुखी है कि अब यंहा रहने वाले जीवों का क्या होगा? यही सोचकर मेरा दिल उदास है और मेरी आँखों से निरंतर पानी बह रहा है और मैं बहुत व्याकुल हो गया हूँ। 

मेंढक ने फिर पूछा कि आप ये कैसे जानते हो? तो बगुले ने जवाब दिया यंहा से थोड़ी दूर एक बहुत ही ख्याति प्राप्त महात्मा जी रहते हैं उन्होंने ही ये भविष्यवाणी की है और ये भी कहा है कि तालाब के सूख जाने पर यंहा रहने वाले सारे जानवर मर जायेंगे। यह सुनकर मेंढक को भी चिंता हुई और उसने यह जाकर अपने साथियों को बताई।

यह सुनकर सभी जानवर बगुले के पास पहुंचे और बोले कि भाई हमें कोई उपाय भी तो बताओ ताकि हमारी प्राण रक्षा हो सके, तो बगुले ने कहा कि ऐसा है अब मैं तो बूढा हो गया हूँ लेकिन फिर भी मैं तुम्हारी एक मदद कर सकता हूँ, यहाँ से कुछ दूर आगे जाकर एक बड़ा तालाब है। अगर तुम चाहो तो मैं रोजाना एक-एक करके तुमको यंहा से उस तालाब तक पंहुचा सकता हूँ, तुम्हारी भी समस्या हल हो जाएगी और साथ में सूखा आने तक सब लोग एक-एक करके उस तालाब तक पहुँच भी जाओगे। “मरता क्या न करता”, अब सभी जानवरों ने उसकी बात मान ली।

अब बगुला एक-एक करके रोज एक मछली या मेंढक को लेकर वंहा से जाता और रास्ते में उसे मारकर खा जाया करता। इस प्रकार उसके भोजन की समस्या का तो समाप्त हो गयी और वह बड़े मज़े से रहने लगा। एक दिन मेंढक ने उस से कहा भाई मेरा नंबर भी लगा दो मैं काफी दिनों से इन्तजार में हूँ तो बगुले ने सोचा अच्छा है बहुत दिन से मछली खाने को मिल रही है आज मुह जा जायका भी बदल जायेगा और क्यों न आज मेंढक ही खा लिया जाये ये सोचकर बगुला मेंढक को अपनी पीठ पर बैठाकर उड़ चला और थोड़ी दूर जाने के बाद उसी पत्थर पर उतरा जंहा वो मछलियों को खाया करता था तो मेंढक ने वंहा पड़ी मछलियों के कंकाल देखकर पुछा कि भाई बड़ा तालाब यंहा से कितनी दूर है इस पर बगुले ने कहा कौन सा तालाब यंहा कोई तालाब नहीं है और अब बाकियों की तरह तू भी मरने को तेयार हो जा और ये कहते समय बगुला ये भूल गया कि मेंढक अभी उसकी पीठ पर है और मूर्ख जानकर उसने सब कुछ बक दिया।

मेंढक ने वक्त नहीं गंवाते हुए बड़ी जल्दी से बगुले की गर्दन पकड़ कर उसे मरोड़ दिया और अपनी पूरी ताकत लगाकर अपने तेज दांतों से उसकी गर्दन काट डाली और बगुले के प्राण पखेरु उड़ गये।

मेंढक की सूझ-बूझ और बुद्धि से उसकी जान बच गई, इसलिए कहा गया है कि – “बुद्धिर्यश्य बलम तस्य, निर्बुद्धिश्च कुतो बलम॥” अर्थात जिसके पास बुद्धि है उसके पास बल भी होता है।

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