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जिन्होंने बैंक से फ्रॉड किया अब उन्हीं को बैंक क्यों सौंपना चाहती है मोदी सरकार?

by Tanvi Katyal Molitics - Media of Politics

जिन्होंने बैंक से फ्रॉड किया अब उन्हीं को बैंक क्यों सौंपना चाहती है मोदी सरकार?


साल 1969, केंद्र की सत्ता में थी इंदिरा गांधी. उन्होंने एक झटके में 14 बैंको का राष्ट्रीयकरण यानी सरकारी कर दिया। इंदिरा गांधी ने कहा- बैंक अपनी सामाजिक जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं वह अपने मालिकों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गए हैं। वक्त बीता और साल आया 2021, केंद्र की सत्ता में हैं नरेंद्र मोदी। उन्होंने कहा- सरकार का काम व्यापार करना नहीं है। और उन्होंने बैंको को निजी हाथों में सौंप दिया। दो सरकार। दो फैसले। किसके सही और किसके गलत ये आप तय करें।

पिछले चार सालों में मोदी सरकार ने 14 बैंको को दूसरे बैंको में समाहित यानी विलय कर दिया। अब उनके निशाने पर आईडीबीआई समेत 2 अन्य सरकारी बैंक हैं जिसे वह निजी हाथों में सौंपने जा रही है। देश के सबसे बड़े बैंक कर्मचारी संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ यूनियंस ने इसके विरोध में 15 और 16 मार्च को हड़ताल का ऐलान किया है। बैंक कर्मियों का कहना है कि ऐसे वक्त में जब सरकारी बैंको को मजबूत करके अर्थव्यवस्था को गति देने की जरूरत है उस वक्त उन्हें बेचा जा रहा है।

सवाल है कि इन आईडीबीआई बैंक के साथ बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक आफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को खरीदेगा कौन? अडानी-अंबानी के प्रति मोदी जी का जो प्रेम है वह यहां भी छलकेगा। उन्हें ही मिलने की पूरी संभावना है। #BankStrike हैशटैग के साथ तमाम ट्वीट दिखे उसी में महाराष्ट्र के ऊर्जा मंत्री का एक ट्वीट दिखा, उन्होंने लिखा- पहले उद्योगपति बैंक से लोन लेकर फ्रॉड करता था ये मोदी जी को पसंद नहीं आता तो उन्होंने पूरा बैंक ही उन्हें सौंप दिया।

ये ट्वीट भले ही आपको मजाक लगे लेकिन इसके पीछे की कहानी डरावनी है। मोदी सरकार ने पिछले 3 साल 9 महीने के भीतर उद्योगपतियों का लगभग साढ़े सात लाख करोड़ रुपए राइट ऑफ कर दिया। राइट ऑफ मतलब तमाम बड़े उद्योगपतियों ने कर्ज लिया और सक्षम होने के बावजूद जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाया। किसानों के घर से टूटी साइकिल उठा लाने वाली बैंक उद्योगपतियों के कर्ज को राइट ऑफ कर देती है मतलब बट्टे खाते में डाल देती है। बैंक ऐसे कर्ज को डूबा हुआ मान लेता है।

मैं जिन उद्योपतियों की बात कर रहा हूं इन्हें ही बैंक दिए जाने की तैयारी है। कांग्रेस ने 2004 से 2014 के बीच 2 लाख 20 हजार करोड़ रुपए राइट ऑफ किया। तमाम भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर उद्योगपतियों से मिलीभगत का आरोप लगाया लेकिन अब स्वयं मोदी जी ने महज पौने चार सालों में साढ़े सात लाख करोड़ रुपए उद्योगपतियों का माफ कर दिया। मतलब एकदम कम समय में कांग्रेस से भी चार गुना अधिक। इसमें विजय माल्या व मेहुल चौकसी जैसे भगोड़ो का भी कर्ज बट्टे खाते में डाला गया है।

एक सब्जी वाले की आधी सब्जी खराब निकल जाए तो वह बची आधी सब्जी को महंगा करके अपना लाभ निकालने की कोशिश करता है ठीक ऐसे ही जब बैंक उद्योगपतियों का कर्ज राइट ऑफ करता है तो उसकी भरपाई आम जनता पर अलग और फालतू के टैक्स लगाकर ही करता है। अब अगला सवाल है कि रेलवे स्टेशन, रेलगाड़ी, एयरपोर्ट और हवाई जहाज बेचने के बाद आखिर बैंक बेचने की नौबत क्यों आई। क्या सरकार सिर्फ टैक्स वसूलने के ही लिए हैं, रोजगार के लिए अंबानी-अडानी हैं तो फिर उन्हें ही सत्ता सौंप दी जाए।

बैंको के निजी हाथों में देने के पीछे जो सबसे मजबूत तर्क नजर आता है वह है चुुनाव के वक्त कर्जमाफी का ऐलान। तमाम सरकारों ने जनता को लुभाने के लिए कर्जमाफी का ऐलान कर दिया जिसका असर बैंको पर पड़ा, बैंक की हालत खराब हुई तो सरकार ने उसमें पूंजी डालकर उसे खड़ा किया। जब निजी हाथों में चली जाएगी तो उसे पूंजी डालकर खड़ा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कर्जमाफी का ऐलान करने वाली कंपनियों को निजी बैंको पर निर्भर होना पड़ेगा, जहां भ्रष्टाचार की संभावना अधिक होती है.

कुछ लोगों को लगता है कि सरकारी बैंको में बेईमानी अधिक है इसलिए निजी हाथों में चली जाएं तो बेहतर होगा. असल में बेईमानी तो प्राइवेट में भी है, पिछले कुछ सालों में आईसीआईसीआई बैंक, यस बैंक, एक्सिस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंको में बड़ी गड़बड़ियां सामने आई। एक सच ये भी है कि जब कोई बैंक डूबने की स्थिति में आ जाता है तो उसे सरकार ही बचाती है। हड़ताल कर रहे कर्मियों का कहना है कि डूबे कर्जों की वसूली के लिए कठोर कानूनी कार्रवाई करने के बजाय आईबीसी जैसे कानून बनाना एक साजिश का हिस्सा है। इससे बैंक को अपने कर्ज के हेयरकट यानी मूल से भी कम रकम लेकर मामला खत्म होने के लिए राजी होना पड़ता है।

आखिरी बात, आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने मोदी सरकार को चेताया है कि औद्योगिक घरानों को बैंक बेचना भारी गलती होगी। उन्होंने नोटबंदी से अर्थव्यवस्था बैठ जाने की बात कही थी लेकिन मोदी सरकार नहीं मानी। नतीजा सामने है। अब उन्होंने बैंको को बेचना गलत बता रहे इसका भी नतीजा सामने आएगा। बाकी इस सरकार में आंदोलन अधिक हो रहे हैं काम कम। किसान-विद्यार्थी-बैंकर सब परेशान हैं।

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About Tanvi Katyal Advanced   Molitics - Media of Politics

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Joined APSense since, May 8th, 2019, From guragaon, India.

Created on Mar 18th 2021 06:47. Viewed 272 times.

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